रोम बनाम नियोम | क्या हम इतिहास को मिटाकर भविष्य बना सकते हैं? एक गहरी सोच
चलिए, एक कप कॉफी पीते हुए एक सवाल पर सोचते हैं। अगर आपको दो शहरों में से एक को चुनना हो, तो आप किसे चुनेंगे? एक तरफ है रोम, जहाँ की हर गली, हर पत्थर 3000 साल पुरानी कहानियाँ सुनाता है। और दूसरी तरफ है नियोम, एक ऐसा शहर जो अभी तक बना भी नहीं है, लेकिन जिसके सपने AI, रोबोट्स और उड़ने वाली टैक्सियों से बुने जा रहे हैं।
यह सिर्फ एक काल्पनिक सवाल नहीं है। यह आज की दुनिया की सबसे बड़ी बहसों में से एक को दर्शाता है: रोम बनाम नियोम । यह सिर्फ दो शहरों की तुलना नहीं है, बल्कि यह दो अलग-अलग दर्शनों, दो अलग-अलग भविष्य की कल्पनाओं का टकराव है। एक तरफ विरासत है, दूसरी तरफ अविष्कार। एक तरफ धीमी, सदियों पुरानी इंसानी बसावट है, तो दूसरी तरफ टेक्नोलॉजी द्वारा बनाई गई एक आदर्श दुनिया का वादा।
तो असल में, यह बहस है किस बारे में? और हमारे लिए, भारत में बैठे लोगों के लिए, इसका क्या मतलब है? चलिए, इस गुत्थी को सुलझाते हैं।
रोम | जहाँ हर पत्थर एक कहानी कहता है

रोम को समझना हो तो आपको गूगल मैप्स की नहीं, बल्कि अपने दिल की सुननी होगी। यहाँ की सड़कों पर घूमते हुए आपको ऐसा लगेगा जैसे आप टाइम मशीन में बैठ गए हैं। एक कोने पर आपको कोलोसियम की भव्यता दिखेगी, तो दूसरे कोने पर एक छोटा सा कैफे जहाँ लोग सदियों से एस्प्रेसो पी रहे हैं।
यहाँ कुछ भी परफेक्ट नहीं है। ट्रैफिक जाम है, पुरानी इमारतों को सँभालने की चुनौती है, और एक तरह की प्यारी सी अव्यवस्था है। लेकिन यही रोम की आत्मा है। यह एक ऐसा शहर है जिसे इंसानों ने अपनी गलतियों, अपनी जीतों, अपने प्यार और अपनी नफरत से बनाया है। यह एक ‘ऑर्गेनिक’ शहर है, जो धीरे-धीरे समय के साथ विकसित हुआ है, किसी मास्टर प्लान के तहत नहीं।
रोम का इतिहास हमें सिखाता है कि शहर सिर्फ इमारतें और सड़कें नहीं होते। वे संस्कृतियों, यादों और इंसानी अनुभवों का एक जीता-जागता म्यूजियम होते हैं। यह हमें ठहराव और निरंतरता का पाठ पढ़ाता है। इसीलिए इसे ‘The Eternal City’ या ‘शाश्वत शहर’ कहा जाता है। यह बस चलता रहता है।
नियोम | भविष्य का एक साहसी सपना या एक हकीकत से परे?

अब अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाइए और सऊदी अरब के रेगिस्तान में चलिए। यहाँ सऊदी अरब नियोम प्रोजेक्ट के तहत एक ऐसा शहर बसाया जा रहा है जो किसी साइंस-फिक्शन फिल्म जैसा लगता है। नियोम कोई आम शहर नहीं है। यह भविष्य की एक प्रयोगशाला है।
इसके तीन मुख्य हिस्से हैं:
- द लाइन (The Line): यह सबसे अनोखा कॉन्सेप्ट है। यह 170 किलोमीटर लंबी, लेकिन सिर्फ 200 मीटर चौड़ी एक सीधी लाइन में बसा शहर होगा। कोई कार नहीं, कोई सड़क नहीं, और शून्य कार्बन उत्सर्जन। सब कुछ 5 मिनट की पैदल दूरी पर होगा, और एक छोर से दूसरे छोर तक जाने के लिए हाई-स्पीड ट्रेन होगी।
- ऑक्सागोन (Oxagon): यह दुनिया का सबसे बड़ा तैरता हुआ औद्योगिक केंद्र होगा, जो पूरी तरह से स्वच्छ ऊर्जा पर चलेगा।
- ट्रोजेना (Trojena): रेगिस्तान के बीच में एक पहाड़ी पर्यटन स्थल, जहाँ स्कीइंग से लेकर वॉटर स्पोर्ट्स तक सब कुछ होगा।
नियोम सिटी क्या है ? यह सवाल जितना आसान है, जवाब उतना ही जटिल। यह सऊदी अरब का अपनी अर्थव्यवस्था को तेल से हटाकर टेक्नोलॉजी और टूरिज्म पर लाने का एक महात्वाकांक्षी प्लान है। यह इस विचार पर आधारित है कि हम शून्य से शुरू करके एक बेहतर, अधिक टिकाऊ और कुशल शहर बना सकते हैं, जहाँ प्रकृति और टेक्नोलॉजी एक साथ रह सकें। लेकिन यहाँ एक “लेकिन” है। नियोम की आलोचना भी होती है। मानवाधिकारों के उल्लंघन से लेकर इसके व्यावहारिक होने पर भी सवाल उठाए जाते हैं। क्या ऐसा शहर वाकई इंसानों के रहने के लिए अच्छा होगा, या यह एक कांच का खूबसूरत पिंजरा बनकर रह जाएगा?
आप नियोम की आधिकारिक वेबसाइट NEOM पर जाकर इस प्रोजेक्ट की भव्यता का अंदाजा लगा सकते हैं।
टकराव सिर्फ ईंट और स्टील का नहीं, बल्कि विचारधाराओं का है

यहाँ पर रोम बनाम नियोम की बहस दिलचस्प हो जाती है। यह सिर्फ पुरानी और नई वास्तुकला की लड़ाई नहीं है। यह दो मौलिक विचारधाराओं का टकराव है।
पहला टकराव: संरक्षण बनाम निर्माण (Preservation vs. Creation)
रोम हमें अपनी विरासत को सहेजने और उसके साथ तालमेल बिठाकर जीने की प्रेरणा देता है। यह कहता है कि हमें अपने अतीत को सम्मान देना चाहिए। वहीं, नियोम कहता है कि अतीत की जंजीरों को तोड़कर एक पूरी तरह से नई शुरुआत करना ही बेहतर है। यह एक साहसी विचार है, लेकिन इसमें एक खतरा भी है – क्या हम अपनी जड़ों को काटकर सच में आगे बढ़ सकते हैं?
दूसरा टकराव: इंसानी अनुभव बनाम डेटा-चालित दक्षता (Human Experience vs. Data-Driven Efficiency)
रोम की बेतरतीब गलियों में खो जाना एक अनोखा अनुभव है। यह अव्यवस्था ही इसे मानवीय बनाती है। नियोम में सब कुछ प्लान किया हुआ होगा। AI यह तय करेगा कि ट्रैफिक कैसे चले, ऊर्जा की खपत कैसे हो, और शायद यह भी कि पार्क कहाँ होना चाहिए। यह बहुत कुशल हो सकता है, लेकिन क्या यह उबाऊ नहीं हो जाएगा? क्या हम ऐसी दुनिया में रहना चाहते हैं जहाँ हर चीज़ परफेक्ट और अनुमानित हो?
यह बहस हमें प्रौद्योगिकी और इंसानियत के बीच के संतुलन पर सोचने के लिए मजबूर करती है।
भारत के लिए इसमें क्या सबक हैं?
अब आप सोच रहे होंगे कि रोम और सऊदी अरब की इस कहानी से हमारा क्या लेना-देना? सच तो यह है कि यह बहस भारत के लिए बहुत प्रासंगिक है।
हमारे पास वाराणसी, जयपुर और दिल्ली जैसे शहर हैं, जो रोम की तरह ही इतिहास और संस्कृति की जीती-जागती मिसालें हैं। दूसरी तरफ, हम गुरुग्राम और नवी मुंबई जैसे नए शहर बना रहे हैं और स्मार्ट सिटी भारत मिशन के तहत अपने शहरों को आधुनिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
हमारे लिए सवाल यह नहीं है कि रोम चुनें या नियोम। हमारे लिए सवाल यह है कि हम इन दोनों का संतुलन कैसे बना सकते हैं? हम अपनी ऐतिहासिक धरोहरों को बचाते हुए, उन्हें टेक्नोलॉजी की मदद से और बेहतर कैसे बना सकते हैं? क्या हम वाराणसी की गलियों में वाई-फाई लगा सकते हैं बिना उसकी आत्मा को खोए? क्या हम जयपुर के पुराने बाजारों को संरक्षित करते हुए वहां के ट्रैफिक को स्मार्ट तरीके से मैनेज कर सकते हैं?
नियोम हमें बड़े सपने देखने और साहसी समाधानों के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है। वहीं, रोम हमें याद दिलाता है कि शहरों की असली पहचान उनकी इमारतों से नहीं, बल्कि उनके लोगों और उनकी कहानियों से होती है। भारत को दोनों की जरूरत है – नियोम जैसी महत्वाकांक्षा और रोम जैसी आत्मा।
यह मुद्दा सिर्फ शहरी नियोजन का नहीं, बल्कि हमारी पहचान का है। क्या हम एक ऐसा भविष्य बनाना चाहते हैं जो हमारे अतीत का सम्मान करे, या एक ऐसा भविष्य जो उसे पूरी तरह से मिटा दे? मेरे ख्याल से जवाब कहीं बीच में है। एक ऐसा भविष्य जहाँ हमारे भविष्य के शहर नियोम की तरह कुशल हों, लेकिन उनकी आत्मा रोम की तरह जीवंत और मानवीय हो।
आखिर में, यह बहस हमें एक गहरे सवाल पर लाकर छोड़ देती है। शहर किसके लिए होते हैं? टेक्नोलॉजी के लिए, अर्थव्यवस्था के लिए, या इंसानों के लिए? शायद असली स्मार्ट सिटी वह नहीं है जिसमें सबसे ज्यादा सेंसर हों, बल्कि वह है जहाँ लोग सबसे ज्यादा खुश और जुड़ा हुआ महसूस करें। और इस मामले में, हजारों साल पुराना रोम आज भी नियोम के ब्लूप्रिंट को बहुत कुछ सिखा सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
नियोम शहर कब तक बनकर तैयार होगा?
नियोम एक बहुत बड़ा और चरणबद्ध प्रोजेक्ट है। इसके कुछ हिस्से, जैसे ट्रोजेना, 2026 तक तैयार होने की उम्मीद है ताकि वहां 2029 के एशियाई शीतकालीन खेलों की मेजबानी की जा सके। “द लाइन” जैसे बड़े हिस्सों को पूरा होने में कई दशक लग सकते हैं।
क्या नियोम में कोई भारतीय भी काम कर रहा है?
हाँ, बिल्कुल। नियोम एक वैश्विक प्रोजेक्ट है और इसमें दुनिया भर के इंजीनियरों, वास्तुकारों और विशेषज्ञों को काम पर रखा गया है, जिसमें बड़ी संख्या में भारतीय पेशेवर भी शामिल हैं। भारत की टैलेंटेड वर्कफोर्स इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
रोम को ‘शाश्वत शहर’ (Eternal City) क्यों कहा जाता है?
यह उपाधि प्राचीन रोमन कवियों द्वारा दी गई थी। इसका कारण यह है कि रोम ने अपने लंबे इतिहास में कई साम्राज्यों का उत्थान और पतन देखा है, लेकिन शहर हमेशा किसी न किसी रूप में जीवित और महत्वपूर्ण बना रहा है। यह उसकी अदम्य भावना और निरंतरता का प्रतीक है। इसके ऐतिहासिक केंद्र को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया है।
नियोम प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत कितनी है?
नियोम प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत बहुत अधिक है। शुरुआती अनुमानों के अनुसार, इसकी लागत लगभग 500 बिलियन डॉलर (लगभग 40 लाख करोड़ रुपये) है। हालांकि, इतने बड़े प्रोजेक्ट की अंतिम लागत इससे कहीं ज्यादा भी हो सकती है।
क्या ‘द लाइन’ जैसा शहर सच में संभव है?
यह एक बहुत ही विवादित सवाल है। समर्थक इसे शहरी जीवन में एक क्रांति के रूप में देखते हैं, जबकि आलोचकों का कहना है कि यह इंजीनियरिंग, पर्यावरणीय और सामाजिक रूप से अव्यावहारिक है। यह एक बहुत बड़ा प्रयोग है, और इसकी सफलता या असफलता भविष्य के शहरी विकास की दिशा तय करेगी। और यही इसे इतना रोमांचक बनाता है, जैसा कि हम व्यवसाय की दुनिया में देखते हैं।