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Al Jazeera | सिर्फ एक न्यूज़ चैनल या कुछ और? जानिए क्यों पूरी दुनिया में मचा है बवाल

चलिए, एक कप कॉफ़ी के साथ आज एक ऐसे टॉपिक पर बात करते हैं जो सिर्फ न्यूज़ नहीं, बल्कि न्यूज़ के पीछे की कहानी है। आपने हाल ही में सुना होगा कि इज़राइल ने अल जज़ीरा पर प्रतिबंध लगा दिया। अब, ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। किसी देश का एक अंतरराष्ट्रीय न्यूज़ चैनल को बैन कर देना… ये बहुत कुछ कहता है।

लेकिन यहाँ असली सवाल ये नहीं है कि ‘क्या हुआ’। असली सवाल है ‘क्यों हुआ’? आखिर अल जज़ीरा में ऐसा क्या है कि कोई उसे सच की आवाज़ मानता है तो कोई प्रोपेगैंडा का सबसे बड़ा हथियार? यह सिर्फ एक चैनल नहीं है, दोस्तों। यह एक ग्लोबल पहेली है। और आज हम इसी पहेली के टुकड़ों को जोड़ने की कोशिश करेंगे, बिल्कुल सरल भाषा में। तो चलिए, शुरू करते हैं।

तो आखिर ये अल जज़ीरा है क्या बला? (सिर्फ एक चैनल से कहीं ज़्यादा)

तो आखिर ये अल जज़ीरा है क्या बला? (सिर्फ एक चैनल से कहीं ज़्यादा)

ज़्यादातर लोगों के लिए, अल जज़ीरा का मतलब है कतर का एक न्यूज़ चैनल। बस। लेकिन कहानी इससे कहीं गहरी है।

सोचिए, 1996 का दौर। दुनिया भर की ख़बरों पर BBC और CNN जैसे पश्चिमी चैनलों का दबदबा था। हर खबर, चाहे वो मिडिल ईस्ट की हो या एशिया की, एक पश्चिमी नज़रिए से दिखाई जाती थी। इसी माहौल में, कतर ने एक ऐसा चैनल लॉन्च किया जिसका मिशन था – दुनिया को एक अरबी नज़रिए से ख़बरें दिखाना। एक ऐसी आवाज़ बनना जो अब तक अनसुनी थी।

और यहीं से खेल शुरू हुआ।

अल जज़ीरा ने सिर्फ ख़बरें नहीं दीं, उसने उन लोगों को प्लेटफॉर्म दिया जिन्हें मेनस्ट्रीम मीडिया अक्सर नज़रअंदाज़ कर देता था। इसने उन जगहों से रिपोर्टिंग की जहाँ दूसरे जाने से डरते थे। इसने अफगानिस्तान युद्ध से लेकर अरब स्प्रिंग तक, हर बड़ी घटना को एक ऐसे एंगल से दिखाया जो दुनिया के लिए नया और चौंकाने वाला था। इसके दो मुख्य अंग हैं – अल जज़ीरा अरबी, जो मुख्य रूप से अरब दुनिया पर केंद्रित है, और अल जज़ीरा अंग्रेजी, जो वैश्विक दर्शकों के लिए है। दिलचस्प बात यह है कि कभी-कभी दोनों के टोन और फोकस में थोड़ा अंतर भी देखने को मिलता है।

हीरो या विलेन? विवादों का लंबा इतिहास

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यहाँ से मामला और दिलचस्प हो जाता है। अल जज़ीरा की सबसे बड़ी ताकत ही उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी बन गई।

जब अमेरिका ने इराक और अफगानिस्तान पर हमला किया, तो अल जज़ीरा ने युद्ध के उस पहलू को दिखाया जिसे अमेरिकी मीडिया नहीं दिखा रहा था – आम नागरिकों की मौतें, तबाही और ज़मीनी हकीकत। अमेरिका के लिए यह ‘दुश्मन का प्रोपेगैंडा’ बन गया। जॉर्ज बुश प्रशासन ने तो इसे आतंकवादियों का माउथपीस तक कह डाला था।

फिर आया अरब स्प्रिंग। ट्यूनीशिया से लेकर मिस्र तक जब सड़कों पर क्रांति की लहर दौड़ी, तो अल जज़ीरा उसका मुख्य मंच बन गया। लोगों के लिए यह लोकतंत्र की आवाज़ था, लेकिन उन देशों के शासकों के लिए यह सत्ता को उखाड़ फेंकने की साज़िश थी।

और अब, गाजा युद्ध समाचार को लेकर इज़राइल के साथ इसका टकराव। इज़राइल का आरोप है कि अल जज़ीरा की रिपोर्टिंग एकतरफा है और हमास का पक्ष लेती है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है। वहीं, अल जज़ीरा और उसके समर्थक कहते हैं कि वे सिर्फ युद्ध की मानवीय कीमत दिखा रहे हैं, जिसे इज़राइल दुनिया से छिपाना चाहता है।

तो सवाल उठता है, यह इतना विवादास्पद क्यों है? इसका सीधा सा जवाब है: यह उन शक्तियों को चुनौती देता है जो कहानी को नियंत्रित करना चाहती हैं। जब आप ‘आधिकारिक बयान’ से आगे जाकर सवाल पूछते हैं, तो आप शक्तिशाली लोगों के दुश्मन बन ही जाते हैं। यही मीडिया की भूमिका का सबसे जटिल पहलू है।

सिक्के का दूसरा पहलू | कतर का ‘सॉफ्ट पावर’

सिक्के का दूसरा पहलू | कतर का 'सॉफ्ट पावर'

चलिए, अब उस बात पर आते हैं जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता – पैसा। अल जज़ीरा को कतर की सरकार से फंडिंग मिलती है। और यह एक बहुत बड़ा फैक्टर है।

इसे ‘सॉफ्ट पावर’ कहते हैं। कतर, जो भौगोलिक रूप से एक छोटा सा देश है, अल जज़ीरा का उपयोग पूरी दुनिया में अपना प्रभाव डालने के लिए करता है। यह एक ऐसा रणनीतिक टूल है जो उसे वैश्विक मंच पर एक बड़ी आवाज़ देता है। आप दुनिया के किसी भी कोने में हों, समाचार की दुनिया में कतर की उपस्थिति महसूस कर सकते हैं।

लेकिन यहीं पर आलोचक सवाल उठाते हैं। क्या जो चैनल अपने फाइनेंसर (कतर) की आलोचना करने से बचता है, वह निष्पक्ष हो सकता है? यह एक जायज़ सवाल है। अक्सर यह देखा गया है कि अल जज़ीरा कतर की अपनी आंतरिक राजनीति या मानवाधिकार रिकॉर्ड पर उतना आक्रामक नहीं होता, जितना वह दूसरे देशों पर होता है। यह एक ऐसा विरोधाभास है जिसके साथ यह नेटवर्क हमेशा से जिया है। यह समझना ज़रूरी है कि कोई भी मीडिया आउटलेट वैक्यूम में काम नहीं करता; हर किसी का कोई न कोई एजेंडा या दृष्टिकोण होता है।

एक भारतीय दर्शक के लिए इसके क्या मायने हैं?

एक भारतीय दर्शक के लिए इसके क्या मायने हैं?

ठीक है, यह सब तो हो गया। लेकिन भारत में बैठे एक आम इंसान के लिए इस पूरी बहस का क्या मतलब है? हम क्यों परवाह करें?

तीन मुख्य कारण हैं।

  1. एक अलग नज़रिया: हम अक्सर दुनिया को या तो भारतीय मीडिया या पश्चिमी मीडिया (BBC, CNN) की नज़रों से देखते हैं। अल जज़ीरा एक तीसरा, गैर-पश्चिमी दृष्टिकोण प्रदान करता है, खासकर मध्य पूर्व और मुस्लिम दुनिया से जुड़ी घटनाओं पर। यह हमें पूरी तस्वीर देखने में मदद करता है।
  2. मीडिया साक्षरता: आज के दौर में, यह समझना कि खबर कौन बता रहा है और क्यों बता रहा है, उतना ही ज़रूरी है जितना कि खुद खबर। अल जज़ीरा का केस स्टडी हमें सिखाता है कि हर खबर के पीछे एक राजनीति, एक फंडिंग मॉडल और एक दृष्टिकोण होता है। यह हमें एक स्मार्ट और जागरूक दर्शक बनाता है।
  3. वैश्विक घटनाओं का असर: मध्य पूर्व में होने वाली कोई भी घटना, चाहे वो तेल की कीमतों को लेकर हो या राजनीतिक अस्थिरता, सीधे भारत को प्रभावित करती है। इसलिए, उस क्षेत्र से आने वाली हर आवाज़ को सुनना, भले ही हम उससे सहमत हों या न हों, हमारे अपने हित में है। यह सिर्फ विदेश नीति नहीं, बल्कि हमारे व्यवसाय और अर्थव्यवस्था से भी जुड़ा है।

सच कहूं तो, अल जज़ीरा पर प्रतिबंध सिर्फ एक चैनल को बंद करने की घटना नहीं है। यह सूचना के प्रवाह को नियंत्रित करने की एक बड़ी लड़ाई का हिस्सा है।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

अल जज़ीरा का मालिक कौन है?

अल जज़ीरा मीडिया नेटवर्क का स्वामित्व कतर की सरकार के पास है। यह “निजी निगम के लिए सार्वजनिक” मॉडल पर काम करता है, लेकिन इसकी फंडिंग मुख्य रूप से कतर सरकार द्वारा की जाती है।

क्या भारत में अल जज़ीरा पर प्रतिबंध है?

नहीं, फिलहाल भारत में अल जज़ीरा पर कोई प्रतिबंध नहीं है। हालांकि, 2015 में, सरकार ने चैनल को एक गलत नक्शा दिखाने के लिए 5 दिनों के लिए ऑफ-एयर करने का आदेश दिया था, लेकिन बाद में इस फैसले को पलट दिया गया था।

अल जज़ीरा पर पक्षपाती होने का आरोप क्यों लगता है?

इस पर पक्षपाती होने के आरोप कई कारणों से लगते हैं। पहला, इसकी कतर सरकार द्वारा फंडिंग , जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यह कतर के हितों को आगे बढ़ाता है। दूसरा, कुछ देशों, विशेष रूप से अमेरिका और इज़राइल का मानना है कि इसकी रिपोर्टिंग उनके विरोधी दृष्टिकोणों को ज़्यादा तवज्जो देती है।

अल जज़ीरा अरबी और अंग्रेजी में क्या अंतर है?

अल जज़ीरा अरबी का दर्शक वर्ग मुख्य रूप से मध्य पूर्व का है और इसकी सामग्री अक्सर ज़्यादा राष्ट्रवादी और विवादास्पद होती है। वहीं, अल जज़ीरा अंग्रेजी का लक्ष्य वैश्विक दर्शक हैं और इसकी टोन आमतौर पर अधिक उदार और संतुलित मानी जाती है।

यह चैनल इतना लोकप्रिय क्यों है?

इसकी लोकप्रियता का मुख्य कारण इसका वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करना है। यह उन कहानियों और आवाज़ों को मंच देता है जिन्हें अक्सर पश्चिमी मीडिया में जगह नहीं मिलती, खासकर ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) से।

अंत में, अल जज़ीरा को आप पसंद करें या नफरत, आप इसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। यह सिर्फ एक न्यूज़ चैनल नहीं है जिसे आप खबरें जानने के लिए देखते हैं। यह एक ऐसा चैनल है जिसके बारे में आपको सोचना पड़ता है। यह हमें सत्ता, नज़रिए और उन कहानियों के बारे में असहज सच का सामना करने के लिए मजबूर करता है जिन पर हम विश्वास करना चुनते हैं। और आज की इस शोर-शराबे वाली दुनिया में, शायद यही इसका सबसे बड़ा योगदान है।

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